Supreme Court On Loan Defaulter – देश के करोड़ों लोगों के लिए जो किसी वजह से अपने लोन की EMI समय पर नहीं चुका पा रहे हैं, उनके लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बड़ी राहत की खबर आई है। अब बैंक या फाइनेंस कंपनी आपकी प्रॉपर्टी जैसे घर, गाड़ी या जमीन पर सीधे कब्जा नहीं कर सकते, जब तक वे पूरी कानूनी प्रक्रिया को फॉलो न करें। यानी अब सिर्फ EMI चूकने पर आपको डराने-धमकाने का जो सिलसिला चलता था, उस पर ब्रेक लग गया है।
मामला क्या था और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
ये केस एक ऐसे व्यक्ति से जुड़ा था जिसने एक गाड़ी के लिए लोन लिया था। लेकिन आर्थिक तंगी के चलते कुछ वक्त तक EMI नहीं दे पाया। बैंक ने बिना कोई नोटिस दिए उसकी गाड़ी उठा ली। जब मामला कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने बैंक की इस कार्रवाई को गलत बताया। कोर्ट ने साफ कहा कि कोई भी बैंक सिर्फ EMI ना चुकाने की वजह से सीधे आपकी संपत्ति जब्त नहीं कर सकता। हर लोन लेने वाले को कानूनी प्रक्रिया के तहत पूरा मौका मिलना चाहिए। यह ग्राहक का मौलिक अधिकार है कि उसे अपनी बात रखने का अवसर दिया जाए।
बैंक और NBFC को मिले कड़े निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बैंक और NBFC को यह भी याद दिलाया कि उन्हें SARFAESI Act और बाकी संबंधित कानूनों का पूरी तरह पालन करना होगा। यानी ग्राहक को 60 दिन का नोटिस देना जरूरी है, साथ ही उसे अपील और पुनर्विचार का मौका भी देना होगा। सीधे प्रॉपर्टी पर कब्जा करने की मानसिकता अब नहीं चलेगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत हर नागरिक को न्याय का अधिकार है और बैंकों को भी इसका सम्मान करना होगा।
SARFAESI Act की असली सच्चाई
SARFAESI Act, 2002 के तहत बैंक तभी किसी लोन लेने वाले की संपत्ति जब्त कर सकते हैं जब उसका अकाउंट NPA (Non-Performing Asset) घोषित किया गया हो। और उसके बाद भी बैंक को 60 दिन का नोटिस भेजना होता है। इस दौरान ग्राहक को जवाब देने, बातचीत करने और समाधान निकालने का पूरा हक है। लेकिन कुछ बैंक इस प्रक्रिया को दरकिनार कर सीधे रिकवरी एजेंट भेजकर संपत्ति पर कब्जा कर लेते हैं, जो अब गैरकानूनी माना जाएगा।
आम जनता को मिलेगा सीधा फायदा
इस फैसले से सबसे बड़ा फायदा उन लोगों को होगा जो वाकई में आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। पहले EMI चूकते ही बैंक वाले या एजेंट कॉल कर-करके परेशान करने लगते थे, धमकियां देते थे और कुछ तो घर या दुकान तक पहुंच जाते थे। अब ऐसा करने वालों को कोर्ट से सीधी फटकार मिलेगी। अब अगर आपकी किस्तें नहीं भर पा रहे हैं तो आपके पास नोटिस पाने, अपनी बात कहने और कानूनी राहत मांगने का हक पहले से ज्यादा मजबूत हो गया है।
क्या करें जब आप EMI नहीं भर पा रहे हों?
अगर आप किसी कारणवश EMI समय पर नहीं दे पा रहे हैं तो सबसे पहले बैंक को ईमानदारी से अपनी स्थिति बताएं। एक चिट्ठी लिखें या मेल करें और कारण बताएं। आप बैंक से री-पेमेंट प्लान में बदलाव या EMI में राहत के लिए कह सकते हैं। अगर बैंक आपकी बात नहीं सुनता तो आप बैंकिंग लोकपाल या ग्राहकों की शिकायत निवारण फोरम में शिकायत कर सकते हैं। कोर्ट में जाने का भी अधिकार हमेशा आपके पास रहता है।
गलत तरीके अपनाने पर बैंक की खैर नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर कोई बैंक या एजेंट बिना नोटिस दिए, जबरदस्ती घर, गाड़ी या अन्य संपत्ति पर कब्जा करता है तो ग्राहक उसके खिलाफ कोर्ट में केस कर सकता है। ऐसे मामलों में बैंक पर जुर्माना भी लग सकता है और एजेंट्स पर कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। यानी अब डराने-धमकाने का खेल नहीं चलेगा।
क्या इसका मतलब है कि अब लोन चुकाना जरूरी नहीं?
ऐसा बिल्कुल नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन लोगों के लिए है जो वाकई में आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, न कि उनके लिए जो जानबूझकर लोन नहीं चुकाते या फ्रॉड करते हैं। अगर कोई बार-बार जानबूझकर EMI नहीं देता, तो कानून उसके खिलाफ भी उतना ही सख्त रहेगा।
EMI नहीं देने पर क्या होता है?
अगर आप एक EMI नहीं चुकाते तो लेट फीस लगती है। तीन लगातार EMI मिस होने पर आपका अकाउंट NPA घोषित हो जाता है। इसके बाद बैंक आपको SARFAESI एक्ट के तहत नोटिस भेजता है। फिर भी आप समाधान नहीं करते, तो ही बैंक आगे कोई वसूली की कार्रवाई कर सकता है। इस पूरे प्रोसेस में आपको हर स्टेप पर जवाब देने का मौका दिया जाएगा।
राहत भी और जिम्मेदारी भी
अब बैंक आपको सिर्फ किस्त चूकने पर डराकर प्रॉपर्टी छीन नहीं सकता। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने आम लोगों को कानूनी सुरक्षा दी है। ये फैसला उनके लिए एक उम्मीद की किरण है जो अपनी मजबूरी के कारण वक्त पर लोन नहीं चुका पाते लेकिन बैंक की धमकियों से परेशान रहते हैं। अब आपके पास है समय, अधिकार और इंसाफ पाने का रास्ता। लेकिन ध्यान रहे, लोन लिया है तो उसे चुकाना आपकी जिम्मेदारी भी है।
Disclaimer
यह लेख केवल सामान्य जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। यह किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह नहीं है। किसी भी प्रकार के कानूनी निर्णय या कार्रवाई से पहले संबंधित विशेषज्ञ या अधिवक्ता से सलाह अवश्य लें।