Supreme Court Decision – हमारे देश में प्रॉपर्टी से जुड़े कानूनों को लेकर लोगों के मन में अक्सर भ्रम रहता है। खासकर जब बात बुजुर्ग माता-पिता और उनके बच्चों के रिश्ते की हो, तो सवाल उठता है – क्या मां-बाप अपनी औलाद को घर या प्रॉपर्टी से बेदखल कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर एक अहम फैसला सुनाया है, जो लाखों परिवारों के लिए बेहद जरूरी जानकारी है।
क्यों उठता है ये सवाल बार-बार?
बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और उन्हें मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने के कई मामले सामने आते हैं। ऐसे में कई माता-पिता चाहते हैं कि वो अपने बेटों या रिश्तेदारों को अपनी प्रॉपर्टी से बाहर निकाल सकें। इन्हीं हालातों को देखते हुए एक मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जिसमें बुजुर्ग पिता ने अपने बेटे को घर से निकालने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने उनका केस खारिज कर दिया। अब सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?
क्या कहता है Senior Citizens Act, 2007?
यह कानून खासतौर पर 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों के लिए बनाया गया है, ताकि अगर उनके पास खुद की कमाई का जरिया ना हो, तो वो अपने बच्चों से भरण-पोषण मांग सकें। इस एक्ट के तहत ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं, जो ऐसे मामलों की सुनवाई करते हैं और जरूरत पड़ने पर बच्चों को आदेश भी देते हैं कि वे माता-पिता की देखभाल करें।
Section 23 की क्या है भूमिका?
इस एक्ट की धारा 23 कहती है कि अगर माता-पिता अपनी प्रॉपर्टी किसी को देते हैं – चाहे वह बेटा हो, बहू हो या कोई और – तो वो इसे इस शर्त पर दे सकते हैं कि उन्हें जरूरी सुविधाएं और देखभाल दी जाएगी। अगर यह शर्त पूरी नहीं होती, तो यह माना जाएगा कि संपत्ति का ट्रांसफर धोखे या दबाव में हुआ है। ऐसे में ट्रिब्यूनल इस ट्रांसफर को रद्द कर सकता है।
बहू को निकालने वाले केस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
साल 2020 में एक केस में बुजुर्ग माता-पिता ने बहू को घर से निकालने की मांग की थी। उन्होंने Senior Citizens Act के तहत ट्रिब्यूनल से राहत मांगी थी। ट्रिब्यूनल ने माता-पिता के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन बहू ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Domestic Violence Act, 2005 के तहत बहू को सिर्फ इसलिए घर से नहीं निकाला जा सकता क्योंकि वह प्रॉपर्टी की मालिक नहीं है। हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर मामला माता-पिता की सुरक्षा और भरण-पोषण से जुड़ा हो, तो ट्रिब्यूनल बेदखली का आदेश दे सकता है।
क्या सुप्रीम कोर्ट ने बेदखली को पूरी तरह से रोका है?
बिलकुल नहीं। कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर औलाद अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर रही है और उन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से परेशान कर रही है, तो ट्रिब्यूनल उसे प्रॉपर्टी से बाहर निकालने का आदेश दे सकता है। लेकिन यह फैसला तभी लिया जाएगा जब पक्के सबूत हों। कोर्ट ने यह भी कहा कि बेदखली का आदेश देने से पहले दूसरे पक्ष की बातों को भी गंभीरता से सुना जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने बेटे को क्यों नहीं निकाला?
जिस केस में सुप्रीम कोर्ट ने बेटे को बेदखल करने से मना किया, उसमें 2019 में ट्रिब्यूनल ने पहले ही आदेश दिया था कि बेटा केवल दुकान और एक कमरे तक ही सीमित रहेगा और माता-पिता की इजाजत के बिना घर में दखल नहीं देगा। माता-पिता ने 2023 में फिर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन अदालत ने पाया कि पिछले आदेश के बाद बेटे के दुर्व्यवहार का कोई सबूत नहीं है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि हर केस में सीधे बेदखली का फैसला नहीं लिया जा सकता।
तो माता-पिता कब निकाल सकते हैं औलाद को घर से?
अगर औलाद माता-पिता की देखभाल नहीं कर रही हो, उन्हें शोषण या उत्पीड़न का शिकार बना रही हो, तो माता-पिता Senior Citizens Act के तहत ट्रिब्यूनल में केस दर्ज कर सकते हैं। अगर ट्रिब्यूनल को लगता है कि बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए औलाद को निकालना जरूरी है, तो वह ऐसा आदेश दे सकता है। लेकिन यह सब सबूतों और परिस्थिति पर निर्भर करता है।