प्रॉपर्टी पर कब्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बनाये नए सख्त नियम Property Rights

By Prerna Gupta

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Property Rights – भारत में प्रॉपर्टी से जुड़े मामलों में अक्सर लोगों की एक आम सोच होती है – “अगर हमने पैसा दे दिया और जमीन या मकान का कब्जा ले लिया, तो अब वो हमारी प्रॉपर्टी हो गई।” लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने इस सोच पर सीधा झटका दिया है। कोर्ट ने साफ-साफ कह दिया है कि सिर्फ पेमेंट करना और कब्जा ले लेना आपको उस प्रॉपर्टी का कानूनी मालिक नहीं बनाता। असली मालिक वही माना जाएगा जिसके नाम पर रजिस्टर्ड सेल डीड होगी, यानी रजिस्ट्री।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

एक नीलामी केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक किसी प्रॉपर्टी का रजिस्टर्ड डॉक्युमेंट मौजूद नहीं है, तब तक कोई भी व्यक्ति उस संपत्ति का कानूनी मालिक नहीं माना जा सकता। अदालत ने यह बात बेहद सख्ती से रखी और इस सोच को खारिज कर दिया कि भुगतान करने और कब्जा ले लेने से आप मालिक बन जाते हैं। इसका सीधा मतलब है कि अगर आपने जमीन या मकान खरीदा है और अभी तक उसकी रजिस्ट्री नहीं करवाई है, तो कानूनी नजरिए से आप उसके मालिक नहीं हैं।

ये गलती सिर्फ गांवों में नहीं, शहरों में भी आम है

अक्सर यह माना जाता है कि ऐसी लापरवाही सिर्फ गांवों में होती है, लेकिन हकीकत यह है कि शहरों में भी लोग रजिस्ट्री से बचने के चक्कर में बड़ा रिस्क उठा लेते हैं। पैसे बचाने की कोशिश में स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस नहीं देते और सोचते हैं कि जब जरूरत पड़ी, तब करवा लेंगे। लेकिन बाद में यही लापरवाही बड़ी कानूनी मुसीबत का कारण बन जाती है। कई लोग सालों तक कोर्ट के चक्कर काटते हैं और उनकी मेहनत की कमाई बर्बाद हो जाती है।

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बिना रजिस्ट्री नहीं मिलेगा मालिकाना हक

कोर्ट ने बिल्कुल साफ कर दिया है कि प्रॉपर्टी का मालिक वही माना जाएगा जिसके पास रजिस्टर्ड सेल डीड होगी। यह रजिस्ट्री ही वो आधिकारिक दस्तावेज होती है जो सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज होती है और बताती है कि प्रॉपर्टी किसके नाम पर है। अगर आपने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है तो आपके पास यह साबित करने के लिए कोई पुख्ता कागज नहीं है कि वो संपत्ति आपकी है।

संपत्ति कानून में क्या है नियम?

संपत्ति से जुड़े भारतीय कानून में यह बात बहुत पहले से ही स्पष्ट है कि ₹100 या उससे अधिक की कोई भी अचल संपत्ति अगर रजिस्टर्ड नहीं है, तो उसका ट्रांसफर मान्य नहीं माना जाएगा। यह नियम 1882 के ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट में शामिल है। इसका मकसद है कि संपत्ति के लेन-देन में पारदर्शिता रहे और धोखाधड़ी से लोगों को बचाया जा सके।

बिचौलियों और डीलरों की मुश्किलें बढ़ीं

यह फैसला उन बिचौलियों और प्रॉपर्टी डीलरों के लिए भी एक बड़ा झटका है जो बिना रजिस्ट्रेशन के सौदे करवाते हैं। कई बार पावर ऑफ अटॉर्नी या सिर्फ मौखिक सहमति के आधार पर डील हो जाती है, लेकिन बाद में जब विवाद खड़ा होता है, तो किसी के पास कोई कानूनी दस्तावेज नहीं होता। अब ऐसे सौदों की कोई वैल्यू नहीं बचेगी क्योंकि कोर्ट ने साफ कह दिया है – मालिकाना हक सिर्फ रजिस्ट्री से ही मिलेगा।

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आम लोगों के लिए जरूरी सबक

अगर आप कोई फ्लैट, प्लॉट या मकान खरीदने का प्लान बना रहे हैं, तो यह फैसला आपके लिए आंखें खोलने जैसा है। आपको यह समझना जरूरी है कि सिर्फ पैसे देना और कब्जा लेना पर्याप्त नहीं है। रजिस्ट्रेशन कराना एक कानूनी प्रक्रिया है जो आपके हक को मजबूत करती है। जो लोग सिर्फ कुछ हजार रुपये बचाने के लिए रजिस्ट्री नहीं करवाते, वो बाद में लाखों का नुकसान उठा बैठते हैं।

प्रॉपर्टी खरीदते समय क्या सावधानियां रखें?

कोई भी डील करने से पहले जरूरी है कि आप सभी कागजात ध्यान से चेक करें। पता करें कि संपत्ति किसके नाम है, कोई लोन या कानूनी विवाद तो नहीं चल रहा है। स्थानीय रजिस्ट्री ऑफिस से प्रॉपर्टी की स्थिति की पुष्टि करें। और सबसे जरूरी – रजिस्टर्ड सेल डीड जरूर बनवाएं। अगर आप खुद नहीं समझ पा रहे हैं तो किसी अच्छे कानूनी सलाहकार से बात करें, ताकि भविष्य में किसी प्रकार की परेशानी न हो।

ऑनलाइन भी मिलती है जानकारी

आजकल कई राज्यों में प्रॉपर्टी से जुड़ी जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है। आप सरकारी वेबसाइट पर जाकर यह चेक कर सकते हैं कि प्रॉपर्टी किसके नाम पर है, कोई विवाद या बकाया तो नहीं है, और दस्तावेज़ असली हैं या नहीं। इसके अलावा, फील्ड में जाकर ज़मीन की सच्चाई देखना भी बेहद जरूरी है। कागज में जो दिख रहा है, क्या जमीन पर वही स्थिति है – यह खुद जाकर जांचें।

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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सभी प्रॉपर्टी खरीदारों और विक्रेताओं के लिए एक मजबूत संदेश है – सिर्फ पैसा देना और कब्जा लेना काफी नहीं है। बिना रजिस्ट्री के आपका दावा कभी भी कमजोर पड़ सकता है।

डिस्क्लेमर

यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी किसी कानूनी सलाह का विकल्प नहीं है। प्रॉपर्टी से जुड़े किसी भी निर्णय से पहले किसी योग्य कानूनी सलाहकार की सलाह अवश्य लें।

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