Property Ownership Documents – आजकल हर कोई चाहता है कि उसका अपना एक घर हो। चाहे फ्लैट हो या प्लॉट, लोग प्रॉपर्टी में इन्वेस्ट करने के लिए लाखों रुपये खर्च करने को तैयार हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर घर खरीदते वक्त कुछ जरूरी कागजों की जांच नहीं की, तो वही प्रॉपर्टी आपके लिए मुसीबत बन सकती है? भारत में कई बार ऐसा हुआ है जब सही कागज़ी प्रक्रिया ना अपनाने की वजह से लोगों को न केवल कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़े, बल्कि बुलडोजर तक झेलना पड़ा।
तो अगर आप भी घर या कोई जमीन खरीदने की सोच रहे हैं, तो इन 5 जरूरी कागजों की जांच जरूर करें। ये कागज आपकी प्रॉपर्टी को न सिर्फ कानूनी रूप से सुरक्षित बनाएंगे, बल्कि आपको भविष्य की परेशानियों से भी बचाएंगे।
रजिस्ट्री डीड – असली मालिक कौन है, पता यही लगाता है
जब भी आप किसी भी संपत्ति को खरीदते हैं, सबसे पहला और जरूरी कागज होता है रजिस्ट्री डीड। यही वह दस्तावेज़ है जो बताता है कि जिस प्रॉपर्टी को आप खरीद रहे हैं, वह असल में किसके नाम है। इस डीड में प्रॉपर्टी का पूरा विवरण दर्ज होता है – जैसे कि उसका पता, क्षेत्रफल, बिक्री की शर्तें और कीमत। आपको यह जरूर देखना चाहिए कि जो व्यक्ति आपको प्रॉपर्टी बेच रहा है, क्या वही असली मालिक है या नहीं। अगर रजिस्ट्री डीड में किसी और का नाम दर्ज है, तो फौरन सतर्क हो जाइए। ऐसे मामलों में प्रॉपर्टी खरीदना खतरे से खाली नहीं होता।
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लैंड रिकार्ड – जमीन का इतिहास पढ़ना जरूरी है
अब बात करते हैं लैंड रिकार्ड की। यह दस्तावेज़ उस जमीन का पूरा इतिहास सामने लाता है। इसमें बताया गया होता है कि इस जमीन पर पहले किसका हक था, किसके नाम दर्ज थी और क्या अब कोई विवाद उस पर चल रहा है। अगर जमीन किसी कानूनी पचड़े में फंसी हुई है, तो उसकी मालकिनी चाहे कितनी ही चमचमाती क्यों ना लगे, आपके लिए खतरे की घंटी बन सकती है। इसलिए प्रॉपर्टी खरीदने से पहले लैंड रिकार्ड को तह तक जाकर समझिए और ये सुनिश्चित कीजिए कि वह जमीन किसी झगड़े में ना हो।
लीज़ डीड – किराये की है या आपकी होने वाली है?
बहुत बार ऐसा होता है कि जिस प्रॉपर्टी को आप खरीदना चाहते हैं, वह पहले से किसी किरायेदार के पास लीज़ पर होती है। अब ऐसे में मामला थोड़ा पेचीदा हो सकता है। लीज़ डीड से आपको यह जानकारी मिलती है कि क्या संपत्ति मालिक को उसे बेचने का अधिकार है या नहीं। कई बार लीज़होल्ड एरिया में प्रॉपर्टी खरीदने के बाद भी आपको मालिकाना हक नहीं मिल पाता क्योंकि लीज़ की शर्तें पूरी नहीं हुई होती हैं। इसलिए जरूरी है कि लीज़ डीड को ध्यान से पढ़ें और यह सुनिश्चित करें कि लीज़ की अवधि समाप्त हो चुकी हो और उसमें कोई झगड़ा न चल रहा हो।
टाइटल डीड – मालिकाना हक का सबसे अहम दस्तावेज़
अब बात करते हैं टाइटल डीड की। यह कागज साबित करता है कि जिस प्रॉपर्टी को आप खरीद रहे हैं, उस पर स्वामित्व का पूरा हक किसका है। अगर टाइटल डीड में कोई उलझन या विवाद है तो समझ लीजिए कि आने वाले समय में आपको कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं। इस डीड को बहुत बारीकी से जांचना चाहिए – कहीं ऐसा तो नहीं कि उस पर पहले से किसी बैंक या व्यक्ति का दावा चल रहा हो। फोटोकॉपी से काम मत चलाइए, हमेशा ओरिजिनल दस्तावेज़ देखिए और उसकी सत्यता सुनिश्चित करिए।
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संपत्ति कर पंजीकरण – टैक्स भरा गया या आप पर बकाया है?
आखिरी लेकिन उतना ही जरूरी कागज है – प्रॉपर्टी टैक्स से जुड़ा पंजीकरण। बहुत बार लोग प्रॉपर्टी तो खरीद लेते हैं लेकिन बाद में पता चलता है कि उस पर कई सालों का टैक्स बाकी है। ऐसी स्थिति में नया मालिक होने के नाते वह सारा टैक्स आपको चुकाना पड़ सकता है। इसलिए यह जांचना बहुत जरूरी है कि पिछले वर्षों में संपत्ति कर समय पर भरा गया है या नहीं। आप स्थानीय नगर निगम से इसका रिकार्ड मंगवाकर देख सकते हैं।
इन सबके बावजूद क्यों होता है विवाद?
कई बार लोग सोचते हैं कि एक बार प्रॉपर्टी रजिस्टर्ड हो गई तो सब ठीक है, लेकिन असलियत इससे बहुत अलग होती है। अगर आपने ऊपर बताए गए किसी भी कागज की जांच नहीं की तो आपके नाम पर होने के बाद भी प्रॉपर्टी पर कानूनी संकट आ सकता है। ऐसे कई केस सामने आए हैं जब सालों बाद बुलडोजर चल गया क्योंकि जमीन सरकारी थी या किसी और के नाम थी। उस वक्त आपकी लाखों की इन्वेस्टमेंट सिर्फ एक गलती की भेंट चढ़ जाती है।
किसी भी प्रॉपर्टी को खरीदना जिंदगी का एक अहम फैसला होता है और उसमें किसी भी तरह की लापरवाही आपको बर्बादी की ओर ले जा सकती है। ऊपर बताए गए 5 जरूरी कागजों की सही से जांच करके आप न सिर्फ अपनी संपत्ति को सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि भविष्य के किसी भी कानूनी संकट से भी बच सकते हैं। इसलिए सोच-समझकर कदम उठाइए और घर खरीदते वक्त सिर्फ खूबसूरत लोकेशन या सस्ती डील देखकर फैसला मत लीजिए – कागज पहले देखिए, फिर बुकिंग करिए।
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Disclaimer
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी कानूनी या प्रॉपर्टी संबंधी निर्णय से पहले संबंधित विशेषज्ञ या वकील से सलाह जरूर लें। लेख में दी गई जानकारी पूर्ण रूप से सटीक होने की गारंटी नहीं है, और परिस्थितियों के अनुसार इसमें बदलाव हो सकता है।