शादीशुदा बेटियों को भी मिलेगा खेती की जमीन में हिस्सा! सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला Daughter Rights In Agriculture Land

By Prerna Gupta

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Daughter Rights In Agriculture Land

Daughter Rights In Agriculture Land – अगर आप भी अब तक यही मानते थे कि बेटियों का अपने पिता की खेती की जमीन पर कोई हक नहीं होता, तो अब वक्त है अपनी सोच को बदलने का। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसने देश की करोड़ों बेटियों को राहत की सांस दी है। यह फैसला उन सभी महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण है, जिन्हें अब तक पैतृक खेती की जमीन में हिस्सेदारी से वंचित रखा गया था।

शादी के बाद भी बेटी का हक बरकरार रहेगा

अक्सर समाज में यह धारणा रही है कि बेटी की शादी के बाद उसके मायके की संपत्ति पर उसका हक खत्म हो जाता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सोच को सिरे से खारिज कर दिया है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि शादीशुदा बेटी को भी अपने पिता की पैतृक संपत्ति में बराबर का हक मिलेगा, चाहे उसकी शादी हो चुकी हो या नहीं। इस फैसले को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत लागू किया गया है, जिसमें बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार दिया गया है। यानी अब शादी का रिश्ता बेटी के हक को खत्म नहीं कर पाएगा।

खेती की जमीन भी अब बेटियों की संपत्ति

लोगों में यह भी एक आम गलतफहमी थी कि हिंदू उत्तराधिकार कानून सिर्फ मकान, फ्लैट या प्लॉट पर लागू होता है, खेती की जमीन इस दायरे में नहीं आती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि खेती की जमीन भी इस कानून के तहत आती है। इसका मतलब है कि बेटियां चाहे किसी भी शहर में रह रही हों या गांव में, उन्हें अपने पिता की खेती वाली जमीन में बराबरी का हिस्सा मिलेगा। यह फैसला ना सिर्फ कानून को स्पष्ट करता है, बल्कि समाज की मानसिकता को भी बदलने की ओर एक बड़ा कदम है।

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भाई की इजाजत की जरूरत नहीं

बहुत सी बेटियों को यह डर रहता है कि उन्हें अपने हिस्से की जमीन तभी मिलेगी जब उनके भाई उन्हें इजाजत देंगे या मान जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर भी बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि बेटी को अपने हक के लिए भाई की मंजूरी की कोई जरूरत नहीं है। अगर भाई मना करता है या विरोध करता है, तो बेटी सीधा कोर्ट में जाकर अपना हक पा सकती है। कानून उसकी पूरी सहायता करेगा और उसे न्याय दिलाएगा।

सरकारी रिकॉर्ड में नाम न हो, फिर भी हक बरकरार

कई बार बेटियों के नाम खतौनी या खसरे जैसे सरकारी कागज़ों में नहीं दर्ज होते, और इस आधार पर उन्हें यह समझा दिया जाता है कि अब उनका कोई हक नहीं बचा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि नाम दर्ज न होने से हक खत्म नहीं हो जाता। बेटी अगर चाहे तो तहसील या पटवारी कार्यालय में आवेदन देकर अपना नाम दर्ज करवा सकती है। अगर वहां से सहयोग न मिले तो वह कोर्ट का सहारा ले सकती है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि कानून बेटी के साथ खड़ा है और वह उसे उसका जायज़ हक दिलवाएगा।

जमीन बेचने या उपयोग करने का पूरा हक

अगर बेटी को उसका हिस्सा मिल जाता है, तो वह जमीन की मालिक बन जाती है। कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि बेटी उस जमीन को बेचना चाहें तो वह पूरी तरह स्वतंत्र है। यह उसका कानूनी अधिकार है कि वह उस जमीन पर खेती करे, उसे किराए पर दे या फिर किसी और को बेच दे। कोई भी उसे इस अधिकार से रोक नहीं सकता, और न ही इसमें कोई दखलअंदाजी कर सकता है। अब बेटियों को अपनी जमीन के उपयोग के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

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समाज के लिए बड़ा संदेश

यह फैसला सिर्फ कानूनी नहीं, सामाजिक बदलाव की दिशा में भी एक क्रांतिकारी कदम है। अब तक बेटियों को पैतृक संपत्ति से दूर रखने का जो रिवाज चला आ रहा था, उस पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा ब्रेक लगा दिया है। यह फैसला यह भी बताता है कि बेटा और बेटी में अब कानून कोई फर्क नहीं करता। दोनों को समान अधिकार हैं और दोनों को समान सम्मान मिलना चाहिए।

Disclaimer

यह लेख सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले और विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। जमीन, पैतृक संपत्ति और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में सटीक और विस्तृत जानकारी के लिए आप किसी योग्य वकील या अधिकृत सरकारी विभाग से परामर्श जरूर लें।

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