Loan EMI Rules – अगर आपने भी बैंक से कोई लोन लिया है – चाहे कार का हो, होम लोन हो या पर्सनल लोन – तो सुप्रीम कोर्ट का यह ताजा फैसला आपके लिए बेहद अहम है। आजकल EMI न भर पाना आम बात हो गई है, लेकिन इसका असर कितना गंभीर हो सकता है, यह इस केस ने साफ कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने EMI बाउंस से जुड़े एक केस में ऐसा फैसला सुनाया है, जिससे लोन लेने वाले सभी लोगों को सतर्क हो जाना चाहिए।
जब EMI न भर पाए लोनधारक
लोन लेना आसान है लेकिन उसे समय पर चुकाना उतना ही जरूरी। कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि लोग EMI समय पर नहीं भर पाते। यही हुआ उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर के एक व्यक्ति के साथ, जिसने महिंद्रा गाड़ी फाइनेंस करवाई थी। उस व्यक्ति ने करीब 1 लाख रुपये डाउनपेमेंट किया था और बाकी रकम बैंक से लोन के रूप में ली थी। EMI करीब 12,530 रुपये मासिक तय की गई थी।
शुरुआत में सब कुछ ठीक चला। लोनधारक ने 7 महीने तक सभी किश्तें समय पर भरीं, लेकिन इसके बाद उसने कोई भी EMI नहीं भरी। फाइनेंसर कंपनी ने पूरे 5 महीने तक इंतजार किया, लेकिन कोई किस्त नहीं आई। आखिरकार फाइनेंसर ने गाड़ी को अपने कब्जे में ले लिया।
कंज्यूमर कोर्ट ने दिया था ग्राहक के पक्ष में फैसला
जब फाइनेंसर कंपनी ने बिना किसी नोटिस के गाड़ी को कब्जे में लिया, तो लोनधारक सीधे उपभोक्ता अदालत यानी कंज्यूमर कोर्ट पहुंच गया। कंज्यूमर कोर्ट ने यह कहते हुए फैसला ग्राहक के पक्ष में सुनाया कि गाड़ी जब्त करना बिना नोटिस के गलत है। कोर्ट ने फाइनेंसर पर दो लाख रुपये से ज्यादा का जुर्माना भी ठोंक दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बदला पूरा मामला
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। फाइनेंसर कंपनी इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंची और वहां से आया एक बड़ा और साफ संदेश। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक लोन की पूरी किश्तें नहीं चुकाई जातीं, तब तक वाहन पर मालिकाना हक लोन देने वाले फाइनेंसर का ही रहेगा। यानी EMI न चुकाने की स्थिति में अगर कंपनी गाड़ी जब्त करती है, तो उसे कोई अपराध नहीं माना जाएगा।
क्यों मिला फाइनेंसर को कोर्ट से राहत
सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि फाइनेंसर ने गाड़ी सीधा नहीं उठवाई थी, बल्कि 5 महीने तक इंतजार किया गया था। इसके बावजूद अगर लोनधारक ने किश्तें नहीं भरीं, तो वह लोन डिफॉल्टर माना जाएगा। कोर्ट ने यह भी माना कि लोनधारक ने खुद माना कि उसने सिर्फ 7 किश्तें भरी थीं और बाकी का भुगतान नहीं किया गया।
हालांकि बिना नोटिस की गलती मानी गई
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि फाइनेंसर ने गाड़ी जब्त करने से पहले लोनधारक को नोटिस नहीं दिया था, जो एक प्रक्रिया की चूक थी। इसी वजह से फाइनेंसर पर 15,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। लेकिन यह पहले लगाए गए 2 लाख रुपये के जुर्माने की तुलना में काफी कम था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्राहक को अवसर जरूर दिया जाना चाहिए, लेकिन यदि वह लोन की शर्तों का पालन नहीं करता, तो फाइनेंसर अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकता है।
क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आम लोगों के लिए
यह फैसला उन सभी लोगों के लिए एक चेतावनी की तरह है जो लोन लेकर EMI भरने में लापरवाही करते हैं। यह जरूरी है कि समय पर किश्तें चुकाई जाएं, वरना फाइनेंसर आपके वाहन को कब्जे में लेने का पूरा अधिकार रखता है। साथ ही, ग्राहक को भी अपने अधिकार जानने चाहिए, जैसे कि नोटिस देना कानूनी रूप से जरूरी है।
इस मामले से साफ हो गया कि लोन लेने के बाद EMI चुकाना सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि कानूनी बाध्यता भी है। लापरवाही करने पर फाइनेंसर आपके वाहन या प्रॉपर्टी पर दावा कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक तरह से लोन लेने वालों को सतर्क रहने की चेतावनी है।
Disclaimer
यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी किसी कानूनी सलाह या वित्तीय सलाह के रूप में न ली जाए। किसी भी प्रकार की वित्तीय योजना या कानूनी निर्णय से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।