अब सिर्फ एक कागज़ से मिलेगी ज़मीन पर मालिकाना हक – जानिए क्या है नया नियम Property Ownership Document

By Prerna Gupta

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Property Ownership Document

Property Ownership Document – भारत में प्रॉपर्टी को लेकर झगड़े और विवाद कोई नई बात नहीं हैं। अक्सर देखा जाता है कि लोग बिजली का बिल, पानी का बिल या म्यूनिसिपल टैक्स की रसीदें दिखाकर खुद को संपत्ति का मालिक बताते हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इन सब बातों पर एकदम साफ-साफ फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने कह दिया है कि अब सिर्फ एक ही दस्तावेज़ ऐसा है जो आपको संपत्ति का कानूनी मालिक बना सकता है – और वो है रजिस्टर्ड सेल डीड।

अब सिर्फ रजिस्ट्री ही है असली सबूत

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में सुनवाई करते हुए यह साफ कर दिया कि म्यूटेशन, बिजली-पानी के बिल या टैक्स रसीदें सिर्फ सहायक दस्तावेज़ हैं, ये किसी भी हालत में मालिकाना हक का सबूत नहीं माने जा सकते। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जब तक आपके पास वैध और रजिस्टर्ड सेल डीड नहीं है, तब तक आप उस प्रॉपर्टी के मालिक नहीं माने जाएंगे।

रजिस्टर्ड सेल डीड आखिर है क्या?

ये एक ऐसा दस्तावेज़ होता है जो प्रॉपर्टी के खरीदार और बेचने वाले के बीच हुई डील को सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज करता है। इसे सब-रजिस्ट्रार के ऑफिस में रजिस्टर्ड करवाना होता है और इसमें पूरी डील की डिटेल होती है – जैसे कितनी कीमत में खरीदा गया, कब खरीदा गया, गवाह कौन थे, दोनों पक्षों की सहमति आदि। इस दस्तावेज़ को रजिस्ट्री भी कहते हैं और यही अब से प्रॉपर्टी पर मालिकाना हक का इकलौता मजबूत सबूत माना जाएगा।

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कौन-कौन से दस्तावेज़ अब नहीं होंगे मान्य?

बहुत सारे लोग ये मानते आए हैं कि म्यूनिसिपल रिकॉर्ड, बिजली का बिल या कब्जे का कोई कागज़ भी मालिकाना हक का सबूत होते हैं, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इनकी वैल्यू घटा दी है। म्यूटेशन रिकॉर्ड केवल नामांतरण दिखाता है, मालिकाना नहीं। बिजली या पानी का बिल सिर्फ ये बताता है कि आप उस प्रॉपर्टी का इस्तेमाल कर रहे हैं। प्रॉपर्टी टैक्स रसीद से बस ये पता चलता है कि आपने टैक्स दिया है, इसका मालिकाना हक से कोई लेना-देना नहीं है। कब्जा यानी पजेशन भी तब तक कोई मायने नहीं रखता जब तक उसके पीछे रजिस्ट्री न हो। और अगर आपके पास सिर्फ सेल एग्रीमेंट है, जो रजिस्टर्ड नहीं है, तो वो भी अमान्य माना जाएगा।

इस फैसले से अब क्या बदलाव होंगे?

सबसे बड़ा असर तो ये होगा कि झूठे दावे और नकली दस्तावेज़ों पर ब्रेक लगेगा। अब कोर्ट उन्हीं को मालिक मानेगा जिनके पास रजिस्टर्ड डीड होगी। इससे कोर्ट में चल रहे कई पुराने विवाद भी खत्म होंगे। साथ ही म्यूनिसिपल रिकॉर्ड और टैक्स रसीदें अब सिर्फ एक सपोर्टिंग डॉक्यूमेंट रह जाएंगी, जिससे मालिकाना हक का दावा नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा अगर कोई बिना रजिस्ट्री के प्रॉपर्टी पर कब्जा करके बैठा है, तो अब उसे कानूनी संरक्षण नहीं मिलेगा और उस पर अवैध कब्जा करने का केस भी चल सकता है।

अगर रजिस्ट्री नहीं है तो क्या करें?

अगर आपके पास अभी तक प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री नहीं है और आप सिर्फ पुराने कागज़ों या कब्जे के आधार पर रह रहे हैं, तो अब वक्त है कि आप जल्द से जल्द रजिस्ट्री करवाएं। अगर आपने कभी सेल एग्रीमेंट किया है तो उसके आधार पर सबूत जुटाएं – जैसे पेमेंट की रसीदें, पुराने कागज़, गवाह आदि। और सबसे जरूरी, एक अच्छे वकील से मिलकर कानूनी सलाह जरूर लें ताकि भविष्य में कोई परेशानी न हो। क्योंकि अब बिना रजिस्ट्री कोई आपकी बात नहीं सुनेगा।

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सुप्रीम कोर्ट की दो टूक टिप्पणी

कोर्ट ने अपने बयान में कहा कि जब तक किसी के पास रजिस्टर्ड टाइटल डॉक्यूमेंट यानी रजिस्ट्री नहीं है, तब तक वह खुद को उस संपत्ति का मालिक नहीं कह सकता। म्यूटेशन केवल एक रिकॉर्ड है, यह किसी को कानूनी रूप से मालिक नहीं बनाता। इसका मतलब साफ है – मालिक वही है जिसके पास रजिस्ट्री है।

अब लोगों को समझना होगा असली मालिक कौन है

बहुत सारे लोग अब भी भ्रम में हैं कि अगर वे टैक्स भर रहे हैं या बिल उनके नाम पर आ रहा है तो वे मालिक हैं। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस भ्रम को पूरी तरह खत्म कर दिया है। अगर आपने अभी तक रजिस्ट्री नहीं करवाई है, तो तुरंत करवाएं। ये न केवल आपकी संपत्ति को सुरक्षित करेगा बल्कि भविष्य में किसी भी तरह की कानूनी उलझन से भी बचाएगा।

Disclaimer

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यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी किसी प्रकार की कानूनी सलाह नहीं मानी जानी चाहिए। यदि आपकी प्रॉपर्टी से संबंधित कोई कानूनी समस्या है, तो किसी अनुभवी अधिवक्ता से सलाह अवश्य लें।

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